Wednesday 4 May 2016

लीडरशिप कहे सबका मंगल हो!


लीडरशिप के उपर रोहित धनकर जी ने काफी सुंदर तरीके से हम पुरे टीम को एक सोच दि. काफी गहरी सोच के साथ लीडरशिप के उपर वे बात कर रहे थे. उनकी समझ लीडरशिप को लेते हुये काबील-ए-तारीफ थी.

लीडरशिप में वो मेटाकॉग्निशन कि बात कर रहे थे कि लीडर वो होता है जो अपने सोच पर सोचता है. तो इस बात को सुनकर काफी अच्छा भी लगा क्योंकी इस बारे में अपने टीस के टीचर के साथ बातचीत कि थी. जो काफी लीडरशिप से सबंधित है. क्योंकी जो सोचता है अपने सोच के उपर वो तो कही  ना कही excellence कि ओर पहुचने कि बात है.

दुसरी बात रोहित जी ने कि थी कि, लीडरशिप में दो बाते बेहद जरुरी है. एक तो लीडर स्वयंचेतीत होता. इसलिये मेटाकॉग्निशन का बहुत बडा काम है लीडर के लिये क्योंकी जब किसी भी उतार-चढाव में अपने को वो प्रेरित कर सके, अपने सोच और विचार के उपर सोचे.

दुसरी बात यह था कि, एकदुसरे के साथ कामं करना है. क्योंकी लीडर को अकेले नही बल्की अपने टीम के साथ करे. लीडर के मुल्य काफी महत्त्वपूर्ण है. क्योंकी वही तो लोगो तक पहुच सकते है. और वो उसके टीम से जाना जरुरी है. उसमे एक मुल्य रोहित जी ने बताई कि, लोगो के जीवन में अच्छा करने  कि भावना होना यही तो डेमोक्रॅसी को दर्शाता है. इसलिये लीडरशिप और डेमोक्रॅसी एकदुसरे से अलग नही है. वे हमेशा एकदुसरे को मिले-जुले है. क्योंकी जब डेमोक्रॅसी कि बात आती है तो सभी लोगो के अच्छा हो यही जरुरी है जो एकसरीखा हो.

लीडरशीप और डेमोक्रॅसी दोनो एक हि गाडी के पहिये है. इन दोनो को अकेले में देखना मुश्कील है. क्योंकी दोनो के साथ इंसानो के wellbeing के बारे में सोचना बात करना आसान सा हो जाता है.
वे कह रहे थे कि, लीडरशिप यह कर्मा के उपर निर्भर है. मुझे एक आखरी सवाल छुट गया कि, जो  औरते अपने परिवार के लिये करती है. जिसमे अपने बारे मी कोई वे ख्याल नही कर पाते तो क्या वो लीडरशिप है या सहनशीलता है? इस सवाल का जवाब अभी तो मिल ना पाया. उसकी खोज जारी है.


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