Saturday 9 May 2015


सातारा के नागाठाने गाव के अंतर्गत जितने भी पेशेंट को मै मिली, वे अधिकतर महिलाए है. उनमे भी middle adulthood औरते है और कुछ यूथ महिलाए है. पुरुषो का प्रमाण कम है. अधिकतर महिलाए उनके घर के रिश्तो से जुड़े हुए सवालो की वजह से उन्हें मानसिक तौर पर समस्या शुरू हुई है. किसी का बेटा स्कूल नही जाता तो कोई नशे में दंग है तो किसी के बेटे की शादी टूटी, तो कोई अपने पती के संशयी वृती से पीड़ित है. और यह घर की समस्याए कितने सालो से वे लेकर चल रही है. और उसका सीधा परिणाम उनके मानसिक स्वास्थ से जुडा है. कई सारी औरते उनके पती के दबाव के वजह से मानसिक रोगों की शिकार हुई है क्योंकि वे अपने जीवन के खुद के निर्णय ले नही पाई, वे ना कही किसी से मिल पाई, अपनी मनचाही जिदंगी ना जी पाई, उनके जीवन का हिस्सा शादी के बाद वे पूरी तरीके से पती, बच्चे, घर का काम, और उसके साथ खेती या रोजनदारी पर अपने जीवन को चलाया. वे कभी आगे आकर बोल, कह नही पाए. अगर उन्होंने अपनी समस्या को कही भी तो उन्हें उससे निकालने के लिए था भी कौन? क्योंकि उनके घरवाले उन्हें स्वीकारते नहीं. क्योंकि, “जहा तूने शादी की वही तुझे जीना या मरना. हमारे पास अपने पैरो को रखना नही”.

आज उन औरतो के जीवन में यही हुआ. जो पढने, लिखने का वक्त था, तब वे खेती या अन्य कामो के लिए घरवालों ने काम करने के लिए रख दिया, स्कूल नही भेजा. पढने की इच्छा थी. मनचाहे कपडे पिताजी ने नही पहनने दिए. जब शादी करने का समय आया तब उससे पूछा नही की, क्या इस लड़के के साथ शादी करनी है? बच्चे भी घरवालो के मुताबिक़ हुए.

मै अब इस वक्त किसी भी व्यक्ती के उपर कोई दोषा-रोप रख ही नही पा रही हु. लोग बड़े ही नादान थे उनके बचपन में जैसे उनके साथ बड़ो ने व्यवहार किया वे उस चीज को लगातार अपने जीवन में आगे बढ़ते चले. उन्हें वो आजादी, मुक्ति नही मिली जीवन में अपने शरीर, सोच, भावनाओं के प्रती. उनके जीवन के हक़दार वे लोग बने जो उन्हें इस समाज में उनकी तरह बनाना चाहता था और आखिर में जो लोग उसी ही तरीके के जीवन को किसी और के साथ बनवाना चाहते थे. अब उन व्यक्तियों के हाथ में केवल उस व्यक्ती के जीवन को टूटने हुए देखने के अलावा कुछ नही है. वे बस उन बातो को पूरा कर रहे थे जो लोग, यह समाज, उनका बनाया हुआ धर्म चाहता था. बादमे वे खुद भी मरे और उस व्यक्ती की सत्ता वे साथ लेते हुए मरे. और केवल जीवन में दुःख ही दुःख रहा और उससे जुड़े हुए मानसिक, शारीरिक समस्याए रही.

जीवन को ना वे समझे ना किसी और को समझने दिया. वे बस उन सारे विचारों के जंजाल में जीते रहे. अपनी आझादी, विचार, भावनाए खोते रहे. न जाने मरते वक्त उन्हें अपनी जीवन का महत्त्व थोड़ा तो पता चला होगा या नही? लेकिन कई बार तो लोग मरना ही चाहते है, (आत्महत्या कुछ ही लोग करते है) लेकिन जीवन की इस अशांती से इतना हार जाते है की आगे जिंदगी बचती नही.


लेकिन हम जैसे psychologists उन्हें जीवन जीने की उम्मीद से फिर से जाग उठाते है. लेकिन कई बार मदद ना मिलने की वजह से वो उम्मीद थम सी जाती है. मै कुछ नही कर पाती. मै केवल उस परिस्थिती को सुनती हु, समझती हु, अपने किसी साइकोलॉजी फ्रेंड के साथ साझा करती हु. और हमारे पास लिखने और सोचने के अलावा कुछ नही बचता. लेकिन मन में वो आशा होती है की कुछ तो होगा. लेकिन नही होता तो मै खुद हताश होकर कुछ नही कर सकती क्योंकि मन में विचार आता है दुनिया में हर तरीके एक लोग मिलेगे. मेरे मन-मुताबिक़ या मै जो अब सोच रही हु की लोगो को आजादी मिलनी चाहिए ऐसा हो ही नही सकता. क्योंकि जिस दिन यह बात जब सभी पर लागू होगी तो जीवन जीवन नही रहेगा. क्योंकि उसमे संघर्ष दुःख नही होगा. तो ख़ुशी का अहसास नही होगा. हम केवल हसने के लिए हसेंगे. उस हसी के पीछे, सक्सेस नाम की चीज नही होगी. हम इंसान केवल आयी हुई परिस्थति के लिए कोशिश कर सकता है, उसमे कुछ अच्छा लाने की कोशिस करता रहेगा. और यही जिदंगी है. क्योंकि अगर जीवन में चैलेंज आयेगे तो कुछ करने की जीवन में उम्मीद पैदा होगी और कुछ नही तो बस जीवन तो चल रहा है. उसमे उमंग, आशा, अहसास नाम की चीजे बचेगी. इसलिए परेशानी आने को, रोने को, मुझे केवल काम करना है अपने हाथो से, शब्दों से. और यही जीवन है. इसलिए इतना कुछ जीवन के बारे में आयडियल सोचने की जरूरत अब महसूस नही होती. कोई जब चीजे एकदम आयडियल बन जायेगी तो उस आयडियल जीवन का महत्त्व नही बचेगा. इसलिए जीवन के उतार चढाव को स्वीकारो, उसके प्रती, काम शुरू रखना है. 


18 April 2015, 9:42 pm

No comments:

Post a Comment