Sunday 19 April 2015

nh 4 हायवे पर जिंदगी.....................

मेरे जीवन का सफर फिर एक बार शुरुआत nh 4 हायवे पर शुरू हुआ है. जैसे परिवर्तन ट्रस्ट के वर्कर ने कहा की, मेरा परिवर्तन का अनुभव मुझे आगे तक ले जायेगा और यही होनेवाला है. क्योंकि मेरी मंजिल यही है. मुझे लोगो के साथ कम्युनिटी में काम करना पसंद है. इसमे शारीरिक श्रम और दिमागी तौर पर अपने आप को बहुत जागृत और सुदृढ़ रखना होता है. उसमे भी काम करने का इलाका अगर गाव् में मिल जाए तो क्या बात हो जाए. मुझे गाव में काम करना पसंद है. मुझे अच्छा लगता है यहापर रहना. मुझे एक नैसर्गिक जिदंगी मिल जाती है. इस नेचर के साथ अपने आप को भी ढोना मुझे अच्छा लगता है. मुझे जीवित रहने को उत्साहित करता है. कल ही मै एक गाव में जा रही थी, बाइक पर बैठे हुए जाते वक्त अपनी दोनों हाथो के तरफ पहाड़ी, खेत में टहलते हुए हरे रंग के पेड़, पौधे, देखने लायक थे. बाकी लगातार गाडी चल रही थी बिना किसी रुकावट की. एकदम साफ़ रास्ता. किसी भी तरह की आवाज न थी. केवल इस थंड हवा को महसूस करते हुए मेरा सफर जारी रहा. काम करते हुए इस प्रकृति का आनंद भी उतना ही ले रही हु. किसी के घर में जाओ तो मिटटी से बने हुए घरो में बैठना याने एसी में बैठने जैसा होता है. मटके के थंड पानी आस्वाद लेते हुए लोगो के साथ काम की बातचीत चलती है. उसके ही साथ आंगन में टहलते हुए छोटे-छोटे मुर्गी के बच्चे, कभी बिल्ली, और उसके साथ गाय-बकरी अपने जगह बैठी हुई घास खा रही होती है. उसी के साथ दूर-दूर तक दिखने वाला पहाडो को देखते हुए मन मे ख़ुशी, उत्साह काम करने के आ जाता है.


काम करते हुए मन के भीतर तो कई सारे सवाल, संदेह रहने वाला है. लेकिन मुझे इन चीजो से पार नही होना इनके साथ अब काम करना है. अपने हाथो को आगे बढ़ाना है, उन्हें काम करने के लिए प्रोत्साहित करना है. क्योंकि उनका पूरा कनेक्शन मेरे दिमाग से जुडा है. जितना मै काम करुगी उतना ही मेरा दिमाग तेजी से चलेगा. उतना ही वो विकसित होगा. जैसे इन उंगलियों का इस्तेमाल टाइपिंग के  लिए कर रही हु जो मुझे विचार करने के लिए प्रवुत्त करता है. फिर मै लिखने बैठ जाती हु. मेरी सोच चलती रहती है. और मै लिखती हु. 

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