डॉ भीमराव आंबेडकर के बारे में जानो
उतना ही कम है. उनके बचपन के अनुभव से लेकर देश का संविधान को बनाते हुए तक की उनकी
कई सारी बाते है. उन्हें भी बड़े उपेक्षित वाली जिन्दगी जीने मिली थी. उनके जीवनी
में मैंने पढ़ा था की, वे एक बार कही उनके माता-पिता के साथ टांगा में बैठकर जा रहे
थे. जब टाँगे वाले को पता चला की वे “अपृश्य” है, तो उन्हें बिच ही रास्ते से टाँगे
से उतार दिया था. वो दिन उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट था की इस ‘अपृश्य’ शब्द को जीवन
से निकाल देना है. तब से उनका संघर्ष शुरू हुआ. उनके शिक्षा के कार्यकाल में भी
उतनी ही अस्पृश्य वाली जिंदगी उन्हें जीनी मिली. जब कक्षा के अंदर पढ़ाया जाता था
तब उन्हें कक्षा के बाहर बिठाया जाता था.
अगर देखा जाए तो उनका नाम भलेही कई
सारे लोगो के भीतर न था पर उनका नाम उन बौद्ध बांधवों के मुह पर है. उनका जन्म दिन
बड़े ही धूम-धडाके के साथ मनाया जाता है. शाम के वक्त उनके तस्वीरों को पुरे
मोहल्ले, गाव से ढोल-ताशा (आजके जमाने में dj) बजाकर, नाचते-गाते हुए उन्हें
घुमाया जाता है. घूम आ जाने के बाद, रातको गाव में खाना सभी को खाना होता है. कुछ
लोग डॉ आंबेडकर के बारे भाषण और कुछ उनसे जुड़े गानों को गाये जाते है. बाकि 6
दिसम्बर भी उनके मृत्य दिन को याद करने जैसा होता है उस दिन दादर के चैत्यभूमी और
नागपुर के दीक्षा भूमी में भी लोग की झुडं को देखने जैसा होता है.
वे बड़े ही अर्थशास्त्रज्ञ रहे. उनके
जीवनी में लिखा है की वे १८-१८ घंटो तक पढ़ते थे. उन्होंने तो पुरे भारत के संविधान
के किताब में अस्पृश्यों के लिए मिलने वाले हक़ की बाते की है. जो शिक्षा, आरोग्य,
न्याय, अन्य सरकारी सुविधाओं में उनकी भागीदारी अन्य लोगो से भी ज्यादा है क्योंकि
उनकी पिछली जिन्दगी बड़ी ही हिन् थी. लेकिन अब लगता है जिन्होंने बत्तर जिंदगी जी
है वे तो चले गए लेकिन अब जो पीढ़ी आयी है उनको ऐसे और वैसे भी सुविधाए सरकार से
मिल रही है. लेकिन वे सुविधाए लोगो तक पहुचती नही वो अलग बात है. लेकिन लगता है की
हर कोई इंसान है, हम सब इंसान एक जैसे है. उन सुविधाओं को धर्म के आधार पर ना बाटे
लेकिन इंसान के जरुरतो के अनुसार मिले ताकि सारे ही सेम पेज पर आयेगे. उसमे कोई भी
बड़ा-छोटा, उचा-नीचे वाली भाव ना होगी. लेकिन सबको समानता का अधिकार मिले यह भी तो
डॉ आंबेडकर का ख्वाब था जिनको पूरा होने की जरूरत है.
No comments:
Post a Comment