आजकल स्कूल में काम कर रहे है. कई
सारे बच्चे खेलते-खेलते एकदूसरे को ऐसे ही या अपने शब्दों में इस्तेमाल कर देते
है. उसमे उन्हें किसी भी तरह की "शरम", "बुरा"
नहीं लगता. जब सुनती थी तो बड़ा ही अजीब सा लगता है लेकिन वो भी मेरे लिए अब
सामान्य से हुआ है. तो इसी विचार को रखने की कोशिश हो रही है तो आइये पढ़ते है उसके
बारे में.
गालीगलोछ, मारना, चिल्लाना यह बाते मेरे लिए बड़ी ही आम
लगती है. उसमे अपने पढ़ाई में एक आयाम जुडा है, किसी को
बुरा ना लगे इस तरह का हमें बरताव न करना. जो वाकई में सोचने की जरुरत है. तो इस
सिद्धांत को लेकर में आगे बढ़ रही हु. गालियों को बचपन से सुनते आये है. किसी ने
मुझे दि भी है और किसी को देते हुए सूना भी है. जब भी हमारे मोहल्ले में किसी का
झगड़ा होता है तब गालियाँ सबसे ज्यादा दि जाती है सामने वाली पार्टी को. उसमे यह
बात पता नही चलती की हुआ क्या है? गालियाँ बकने के बाद
अगर कोई पूछे की क्या हुआ तो उस झगड़े का पूरा सारांश बताया जाता है.
जो बच्चे या लोग इस तरह के परिवार से आये है उन्हें गालियाँ बड़ी ही बेवकूफी, बुरी, बत्तमीजी वाला व्यवहार लगता है. लेकिन
गालियाँ जिनके जीवन का रोजमर्रा भाग है गालियाँ उनके लिए कोई भी हुआ नहीं
होता गालियों को लेकर. कुछ लोग गालियाँ देने से पहले सोचते है तो कुछ लोग गालियाँ
ऐसे भी बिना किसी हिचकिचाहट से देते है. उसमे कोई भी उन्हें बुराई, कोई क्या बोलेगा इस तरह से संदेह नहीं होता. बस मन में आया तो दे दिया.
कुछ लोगो को गालिया नहीं दि तो दिन नहीं जाता.
रिसर्च के मुताबिक़ गालियाँ देनेवाला समाज में अपनी छाप छोड़ता है की वो कैसा है? अक्सर गालियाँ देनेवाला बुरा माना जाता है. उन्हें अलग सी लेबलिंग दि जाती
है. ज्यादा करके जिनका सामजिक-आर्थिक स्तर नीचा होता है या जो लोग कम पढ़े-लिखे
होते है उनके संस्कृती में गालियाँ अधिकतर पाई जाती है. लेकिन मैंने यह भी देखा है
की अच्छे पढ़े-लिखे, आर्थिक स्तर उचे वाली भी लोग
गालियाँ देते है. तो उन दोनों समाज में कोई भी अंतर नहीं है.
कई बार मुझे लगता है और रिसर्च भी यही कहता है की गालियाँ यह लोगों के बीच का संवाद का भाग है, अगर एक ही तरह के लोगो में आप रहने लगते है तो वहा पर गालियाँ देना बहुत
बड़ी बात नहीं होती. उनके लिए वो एंटरटेनमेंट का भाग बनता है. और एकदूसरे के साथ
रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए गालियाँ महत्वपूर्ण हो जाती है. गालियाँ उनके
जीवन की बोली बन जाती है.
मैंने देखा है ट्रेन में चढ़ते और उतरते हुए अगर किसी औरत को धक्का लगे तो वो
गालियों का वर्षाव कर देती है. उसमे सामने वाले को अगर आदत ना हो तो बस शांत सा हो
जाता है. वो राह में होता है की यह औरत कब चुप बैठेगी.
गालियाँ एक तरह से गुस्से को उतारने
के लिए भी बहुत अच्छी तरीके से काम करता है. क्योंकि कही ना कही व्यक्ति को अपने
भीतर के गुस्से, इर्षा को बाहर उतारने के लिए मदद
करता है. उसके बाद ही वह व्यक्ति शांत हो जाता है. अपने कुछ दोस्त अंग्रेजी में एक
शब्द हमेशा इस्तेमाल करते है “fuck” जो उनके लिए
गालिया नही बल्कि कुछ बुरा हो जाए तो उसे जाहिर करने के लिए यह शब्द है और तो और
वो शब्द उनके लिए रोजमर्रा जीवन में इस्तेमाल करते है.
ज्यादा करके गालियाँ औरतो से जुडी
हुई होती है सामने वाले को चुप्पी कराने के लिए. लोगों में ऐसा माना जाता है की, “मा-बहन की इज्जत सबसे बड़ी होती है” इसलिए सामने
वाला चुप हो ही जाता है. बिना कुछ कहे वो सबकुछ सुन लेता है. तो कुछ लोग सामने
वाले को अलग शब्दों से उसे वही गाली फेकता है. वे गालियाँ भी औरतो के सबसे सुंदर
शरीर के भाग को जहा पर एक जीव का निर्माण होता है, उसको
शब्दों में लेते हुए देते है. जिसमें कई सारे लांछास्पद शब्द को इस्तेमाल किया
जाता है.
गालियों की इन्टेसिटी भी भाषा से बदलती है. अगर गुजराती में गालियाँ
सुनो तो कानों को बंद करने की बारी आती है. मराठी में तो थोड़ा सुन तो सकते ही है.
और अंग्रेजी की गाली तो स्टाइल से भी दि जाती है और वो आजकल के रोजमर्रा जीवन में
इस्तेमाल कर लेते है.
जो बच्चे या लोग इस तरह के परिवार से आये है उन्हें गालियाँ बड़ी ही बेवकूफी, बुरी, बत्तमीजी वाला व्यवहार लगता है. लेकिन गालियाँ जिनके जीवन का रोजमर्रा भाग है गालियाँ उनके लिए कोई भी हुआ नहीं होता गालियों को लेकर. कुछ लोग गालियाँ देने से पहले सोचते है तो कुछ लोग गालियाँ ऐसे भी बिना किसी हिचकिचाहट से देते है. उसमे कोई भी उन्हें बुराई, कोई क्या बोलेगा इस तरह से संदेह नहीं होता. बस मन में आया तो दे दिया. कुछ लोगो को गालिया नहीं दि तो दिन नहीं जाता.
रिसर्च के मुताबिक़ गालियाँ देनेवाला समाज में अपनी छाप छोड़ता है की वो कैसा है? अक्सर गालियाँ देनेवाला बुरा माना जाता है. उन्हें अलग सी लेबलिंग दि जाती है. ज्यादा करके जिनका सामजिक-आर्थिक स्तर नीचा होता है या जो लोग कम पढ़े-लिखे होते है उनके संस्कृती में गालियाँ अधिकतर पाई जाती है. लेकिन मैंने यह भी देखा है की अच्छे पढ़े-लिखे, आर्थिक स्तर उचे वाली भी लोग गालियाँ देते है. तो उन दोनों समाज में कोई भी अंतर नहीं है.
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