Tuesday 14 October 2014

जनमदिन और उसके पीछे विचार.....................................

हमारे और उनके बीच कितना बड़ा पुल है, जिसे तोड़ने की जरूरत है. मै बात कर रही हु उनके बारे में जो, हमसे बड़े और हम उनसे छोटे. यह फर्क तो रहेगा ही. लगता है की इस वजन को सही में तोलने की जरूरत है.

पापा कहते है की, birth डे सेलिब्रेशन नहीं होना चाहिए. वो इसलिए क्योंकि हमारे पालक ने कभी नहीं किया तो क्यों आपका birth डे करना चाहिए? दूसरी बात कह रहे थे की जो लोग इतने बड़े थे नाम और काम से उन्होंने ने भी तो अपना जनम दिन नहीं मनाया? तो हम क्यों मनाये? उन लोगो के जनम दिन पूरी पब्लिक मनाती है.

अगर मै अपने साइकोलॉजी/काउन्सलिंग के बारे में बात करू तो जनम दिन मनाना चाहिए वो इसलिए की बच्चे को उस दिन के लिए सबको एक साथ आने में भी तो मौक़ा मिलता है की वे अपनी एकदूसरे से ख़ुशी साझा कर सके.

शायद हिन्दू कल्चर में ऐसा था की, घर पर कुछ मीठा बनाया जाता है, बडो के आशिर्वाद लिए जाते है, स्कूल में नए कपडे पहनते थे. आज के जनम दिन तो केक लाना, उसपर मोमबत्ती लगाना, उसे फुकना (वही रोशनी जिदंगी के शुरुआत की) लेकिन उसे फूककर केक काटा जाता है और फिर लोग तालिया बजाते है. कही जगह में बड़े बच्चे, घूमने जाते है, रेस्टोरेंट में रुकते है, शराब पी जाती है. और बहुत सारा खर्चा जिसका जनम दिन मनाने में हो रहा है और जो लोग जनम दिन के मौके पर कुछ तोफे देते है जो की काफी भारी भक्कम होता है.


पढ़ा है की पहला जनम दिन फ़ारो (इस्रायल का राजा) का मनाया गया उसके बाद, ग्रीक से केक आया, फिर यूरोपियन कंट्री में [पार्टी मनाई जाती है. केक को राउंड शेप में होता है क्योंकि वो चन्द्रमा को दर्शाता है और उसके ऊपर लगाये हुए कैंडल्स याने की चन्द्रमा की रोशनी और मोमबत्ती इसलिए भी होती है क्योंकि भगवान आकाश में होते है जिनके लिए यह कैंडल्स होते जिसके जरिये हम खुदा को praise करते है. और जब कैंडल्स को बुझाने का वक्त आता है तो उस वक्त एक विश रखनी होती होती है जो खुदा के पास पहुच जाती है. इस तरह की कहानियाँ बनी हुई है. तो इस हिस्ट्री ऐसे लगता है की यह जनम दिन का कांसेप्ट इंडिया का नहीं है. पता नहीं ढूंड रही थी गूगल में लेकिन मिला नहीं. मै तो बस इतना चाहती हु जनम दिन होता है या नहीं होता है लेकिन एकदूसरे के प्रती प्यार, सन्मान, आदर हो और खुश रहे सब. 

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