Friday 3 October 2014

परीक्षा और वो....................................

कभी किसी ने बताया ही नहीं की पढाई कैसे की जाती है? कभी लगता है की क्या जरुरी है बताना की पढाई कैसे करनी चाहिए. हर  कोई अपने तरीके से पढ़ लिख सकता है. लेकिन लगता है की जब तक स्कूल में है वहा पर तक ठीक है की पढो या नहीं पढो. वैसे भी कक्षा आठवी तक तो पास किया जाता ही है तो तब तक तो चलेगा, लेकिन जब हम हम अगले कक्षा तक जा रहे तो पढ़ना कैसे है उसके बारे में बात की जा सकती है और आगे की पढने के लिए भी बहुत मुश्किलों का सामना बच्चो को करना पड़ता है. लेकिन तब तक बहुत देरी हो जाती है तो उस पढाई के कौशल्य के बारे में बात करना मतलब कुत्ते के पूछ में पाईप डालने जैसे हो जाता है.

मुझे याद है की मेरे एक स्कूल के हेडमास्टर कह रहे थे अपने स्कूल के बच्चे के बारे में, की इन बच्चो का भविष्य काफी कठिन होगा क्योंकि उनके लिखाई-पढाई के उपर ध्यान नहीं दिया गया. जो की सच है. और मुझे लगता है इस वजह से इन बच्चो की जिदंगी में आगे बढ़ने में मुश्किलें आ सकती है. लेकिन अगर उन्हें ढंग का मार्गदर्शन मिले तो कुछ बात बने.

जब अपने साथ के दोस्तों को देखती हु की वे पढाई-लिखाई कैसे करते है तो बहुत हैरानी होकर उन्हें देखती हु, कभी-कभी पूछ भी लेते हु की कैसे पढ़ लेते हो, तो वे कहते है की वे कर लेते है. इस तरह से बोलना की कर लेते है वाकई में मुझे बहुत ही आश्चर्य लगता है. क्योंकि मेरे लिए बहुत ही मुश्किल होने लगता है. कई लोग घंटो-घंटो एक किताब पढ़े लेते है वो भी एक जगह बैठते हुए मै बैठू तो मेरे नजर किताब के अलावा भी कई सारे जगहों पर होती है और उसके साथ दिमाग में भी कई सारे विचार तैरते रहते है. जानती हु मै बहुत कुछ कर नहीं सकती लेकिन जीतना भी थोड़ा करुँगी वो मेरे लिए जरुरी है और मै अपने आप को भी इशारा भी दे रही हु. 

पढाई, लिखाई exam के वजह से काफी erritation होती है. वो अच्छी लगती नहीं. अपने सर से कह रही थी की यह परिक्षाए होनी ही नहीं चाहिए. परीक्षा के नाम से ऐसे लगता है की हमारे ज्ञान को तोला जा रहा है, वो भी अंको या ग्रेड से. जिससे पता चलता है की कौन कितना होशियार/इंटेलीजेंट है.

हम बात करते है की, व्यक्ती को motivate करो, उसकी प्रशंसा करो, लेकिन उसका मतलब यह नहीं की व्यक्ती के ज्ञान, क्षमता के उपर उसे तोला जाए. क्योंकि जिसे कम मार्क्स आये इसे कितना बुरा लगता होगा. अंदर ही अंदर उसे कितना दर्द होता है वो व्यक्ती ही जाने. अपने जीवन में मुझे उन दौर से गुजरना पडा. अपनी पढाई-लिखाई के वजह से मुझे अपने आप को बुरा महसूस करती थी, कभी कभी मेरे दोस्त मुझसे दूर भागते थे. क्योंकि मै पढाई में अच्छी नहीं, या मै होशियार नहीं हु या मुझे अच्छी मराठी बोलनी नहीं आती, या फिर मै झोपडपट्टी में रहती हु या फिर मेरे पास अच्छे कपडे नहीं है ऐसे कई सारे लेबलिंग से जाना पडा. तो फिर लगता है की, व्यक्ति के उसके बाहरी चीज पर देखा जाता है की वो कितना अच्छा है या नहीं है. लेकिन उसके अंदर गुणों को देखने के लिए किसी ने कोशिश ही नहीं की,. आज शायद इस तरह से चीजे मेरे साथ नहीं होती अगर होती भी है तो उसे अनदेखा कर लेते है. क्योंकि अब अपने अंदर वो आत्मविश्वास, अपने प्रती प्यार है. इस लिए मुझे कोई उचा-नीचा देखने की कितनी भी कोशिश करे तब पर भी मै गिरुगी नहीं. उसके सिवाय ऐसा भी सोचती हु की जो लोग ऐसा सोचते है उनके सोचने का तरिका ही ऐसा हो या उनके जीवन ही इस तरह से बीता हो जिस वजह से वे ऐसा सोचते है.










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