ऐसा लग
रहा है कि जिंदगी एक अनुभव है
जिसे मैं जी रही रही हू|
इसे जीते
वक्त पता नहीं चल रहा है कि,
कि कया सही है? और
क्या गलत है?
बस्स !
इसे जी रही हू|
क्योंकि
जिंदगी को करीब से देखना का
मौक़ा मिल रहा है और उसे समझने
का |
जिंदगी
क्या है यह पता है और कही पर
पता भी नहीं चल रहा है |
शायद
यही जिंदगी है !
वैसे
तो इस समाज मैं जिंदगी का तो
इशु बनाया जाता है !
कि ऐसा
करा वैसा करो |
पर क्यों
करे ?
क्योंकि
मुझे ऐसा लगता है कि, जिंदगी
को बस्स अनुभव करो
और इस
दौरान तुम्हारे साथ जो हो रहा
है उसे देखो और समझो |
पर इसमें
कोई भी शक्स रिस्पोंसिबल नहीं
होगा क्योंकि इस जिंदगी को
तुम जी रहे हो |
और उसे
जितना सामन्य लोगे उतना ही
आसान होगा
क्योंकि
विपश्यना मैं कहा गया है कि,
जो तुम्हारे साथ हो
रहा है उसे अनित्य भाव से देखो
|
यहाँ
पे अपने या किसीके के उपर इल्जाम
लगाने कि जरूरत नही |
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