बच्चोंको
को हमेशा से खेलने से आनंद
मिलता है, क्यों?
क्योंकि
बच्चे उन खेलो में हमेशा उन्हें
जो चाहिए वह वे खेलते है,
वे खुद निर्णय
लेते है की किसे क्या करना है|
तथा वे खेल
को अपना मानकर खेलते है,
वे उनकी पसंद
वाली चीजोंका उपयोग करके खेलते
है| अगर
हम पढाई की बात करे तो बच्चोंको
पढाई बहुत लेटर स्टेज में दि
जाती है| तो
बच्चोंकी आयु के ६ से ७ वर्ष
जीन चीजोसे से लगाव है उस से
दूर करके, इक
ऐसी चीज के पास लेके जाते है
जिन्हें वे जानते नहीं,
और उनके माता
– पिता, स्कूल
की ओर लेके जाते है जो की उनके
के लिए नई है| वे
उससे दूर भागते है| क्योंकि
बच्चे को स्कूल जाने से पहले
बताया नहीं जाता या फिर पूछां
नहीं जाता की तुम्हे स्कूल
जाना है की नहीं, ओर
तो ओर बच्चे को शुरुवात से ही
“स्कूल” इस शब्द से डराया तथा
धमकाया जाता है| तो
बच्चोंके मन में स्कूल के
प्रती घृणा तो पैदा हो ही जाती
है| बचोंको
को शुरुवात में अगर स्कूल में
४ से ५ घंटे बिठाया जाता है तो
नए लोग, नई
जगह के प्रति काफी अस्थिरता
होती है| आजकल
तो बच्चोंको, आयु
३ से ४ वर्ष में नर्सरी तथा
केजी में भेजा जाता है,
जो उनके घर
से दूर होता है|
बचपन
में बच्चे खेलना शुरू कर देते
है, तभी
उन्हें इतनी रोकटोक नही की
जाती पर जब वे स्कूल प्रवेश
करते है, तब
अभिभावकोंका बच्चोसे यह
गुंजाईश होती है की, “
अब कम खेलना
चाहिए”, “कितने
देर खेलोगे, पढाई
कोन करेगा?” इस
तरह के वाकय जब बच्चोंके भीतर
आने लगते है तो बच्चे पढाई के
प्रति नफरत की ओर देखते है|
वे भी इन सोच
में होते है की, माता-पिता
खेल से दूर क्यों कर रहे है?
उस ही दिन
से पढाई और खेल में भेदभाव
दिखाई देता है|
तो
हम अब बात करे की, खेलने
से बच्चे क्या सीखते है|
तो बच्चे
खेलने से गणित, और
सबसे बड़ी बात भाषा सीखते है|
जो उनको बढने
के लए बहुत बड़ी बात है|
जो बचोंको
पढने, लिखने
के लिए मदद करता है|
खेल
यह अच्छी चीज होती है,
जिससे बच्चोंका
मानसिक, शारीरिक,
विकास होता
है| खेल
यह पुरी बॉडी ओर ब्रेन का
वर्कआउट करता है| पढाई
करते वक़्त बच्चे सिर्फ एक जगह
पर बैठते है, उनके
मस्तिष्क का विकास होता है,
पर खेल में
बच्चे यहाँ से वहा, वहा
से यहाँ होते रहते है|
जब की बच्चे
इक जगह पर घंटो भर बैठ नहीं
सकते| उन्हें
हमेशा कुछ ना कुछ नया चाहिए
होता है, वे
ज्यादा देर तक इक ही चीज लेके
बैठ नहीं सकते|
खेलने
से बच्चे चिजोंको को बटोरना,
रंगोंकी
भिन्नता, गिनना,
चीजोंके
आकार, चिजोंकी
समानता – भिन्नता, चिजोंकी
की तुलना करना, और
तो और वे गुडिया-गुडिया
के खेल, कई
स्पोर्ट्स जैसे कब्बडी,
क्रिकेट में
तो व्यावहारिक ज्ञान भी सीख
लेते है| जैसे
की, निर्णय
लेना, छोटे-बडोंकी
समझ, इक
दूसरे के आदर करना, टीम
में कम करना, घर
के कामोंको बाटना| रिश्तोंको
समझना, उसकी
अहमीयत को जानना, हर
रोल को जानना जैसे की,
माँ,
भैया,
पापा,
काका,
इत्यादी|
(किताब -
सीखना -
सिखाना)
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