क्या
यही है जिन्दगी?
जहा
पर न बोलना,
केवल
सुनना,
समझना,
देखना,
परिस्थिती
को संभालना,
यही सब करना,
यह सारी बाते करते – करते,
कही
ऐसा न हो जाए,
की
हम इश्वर बन जाए या उसका दर्जा
मिल जाए|
यह
दर्जा तो बहुत तकलीफ देनेवाला
है,
जहा
में उस परमात्मा को समझ सकती
हु की वो भी कितने तकलीफ से
गुजर रहा है|
शायद
यही करते –
करते
हम
उम्र,
जिन्दगी,
परिस्थितिया
बीती जायेगी?
और
आखिर में एक सवाल छोड़ जायेगी
की,
क्या
यही है जिन्दगी?
No comments:
Post a Comment