Monday 11 November 2013

घंटी कब बजेगी?.................

अभी फोन पर बात करते करते एक बात निकल के आयी की, ऑफिस छूटने से पहले दो मिनट में घर जाने के लिए तैयार होना और अपनी सुविधानुसार ट्रेन तथा बस का समय निश्चित होता है। तो वे कर्मचारी भी ऑफिस छुटने के वक्त को ताकते रहते है| दिन भर वे काम करने से, अपने बॉस के आर्डर पर इतने थकते है कि, उन्हें भी खाना खाने की फुरसत नहीं होती| ऐसे में इस रोजके काम से मनमुटाव आने लगता है | पर क्या करे अगर वे काम ना करे तो उन का परिवार कैसा चलेगा ? तो रोज की भागम-दौडी उन्हें किसी भी हालत में करनी ही है |

दूसरी ओर ग्रामीण अंचल के स्कूली बच्चे बैग पैक करके साढ़े बारह की छुट्टी वाली घंटी की राह देखते हैं कि कब घंटी बजे और घर की ओर दौड़ पड़ें। स्कूली बच्चे घर जाते वक़्त कितने खुश होते हैं। उनके चेहरों की खुशी अनोखी होती है। इसका निष्कर्ष यह निकाला जा सकता है कि बच्चों के लिए स्कूल कितनी अज़ीब सी जगह होती है। लगता है कि वे सिर्फ स्कूल में आने की अनिवार्यता या बंधन के कारण स्कूल आते हैं। अगर उन्हें स्कूल आने और न आने के बीच चुनाव का अवसर दिया जाय तो शायद वे स्कूल आने की बजाय घर पर रहना और घूमना पसंद करें। लेकिन उनके माता-पिता नें स्कूल में दाख़िला करवाया है, इसलिए वे स्कूल आते हैं।
स्कूल में पढ़ाई के दौरान बच्चों के साथ जो बर्ताव किया जाता है, उससे बचने के लिए और स्वतंत्र रहने के लिए बच्चे तमाम तरह की तरकीबें खोजते हैं जैसे टीचर जब पढ़ाती है तो अपने दोस्तों से बात करना, खाने की छुट्टी में खेलना, बाहर घूमना और मारपीट करना इत्यादि। जिससे उन्हें स्वतंत्रता महसूस होती है।
वैसे देखा जाय माता-पिता द्वारा बच्चों को स्कूल भेजने का मकसद होता है कि उनके अलावा कोई तीसरा व्यक्ति उनके बच्चे की जिम्मेदारी ले। उसे डरा-धमकाकर, मारपीटकर और समझा-बुझाकर सही रास्ते पर लाए। क्योंकि वे अपने स्तर पर बच्चों को समझाने के सारे जतन कर चुके हैं। लेकिन उनके  मनमुताबिक बदलाव की उम्मीद नहीं दिखी।

शायद बच्चे जब पहली बार स्कूल आते हैं तो यही सोचते होंगे कि किसी नई जगह पर आए हैं। लेकिन कुछ दिनों में उस नई जगह पर भी अध्यापकों द्वारा मारने, धमकाने और अनुशासन में रहने के बीच वह नयापन सा खो जाता है। उनके स्कूली जीवन में उबासी वाला माहौल धीरे-धीरे घर करने लगता है। ऐसे माहौल में बच्चों को स्कूल से बेहतर घर का माहौल अच्छा लगता है। स्कूल की चारदिवारी से बाहर जाने के लिए साढ़े बारह की घंटी बजने का इंतजार करते हैं।  

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