Tuesday 12 November 2013

मेरा सवांद बच्चे से.......


आज मेरे स्कूल के सातवी कक्षा का बच्चा पूछ रहा था की, क्या आप भगवान् को मानते हो? मेरा जवाब था की, हां में मानती हु, एक ऐसे परमेश्वर को जो दीखता नहीं है और उसके होने का अहसास है| नाम तो लोगो ने दिए है जैसे शंकर जी, साईंबाबा इत्यादि, बस्स! सबकी अपनी अपनी श्रद्धा होती है की इन सारे भगवान पर विश्वास करते है| हा! पर वे परमेश्वर पर विश्वास करते है|
उसने सुन ने के बाद उसने आगे कहा की, “येशु को भगवान् नहीं कहा जाता पर उसे प्रभु कहते हैमैंने कहा की, क्यों? तो बोला पता नहीं| उसने आगे कहा की, में गिरिजाघर अपने एक भाई के साथ गया था, जहा पर येशु को क्रूस पर लटकाया जाता है, वह सजाया था, वहा पर बेंच तथा डेस्क होते है| जिस पर हाथ जोड़कर प्राथना की जाती है इत्यादि |
तो यह सुनकर मुझे लगा की बच्चे में जिज्ञासा कितनी होती है| वे हमेशा कुछ ना कुछ जानने की कोशिश करते है| वे चाहते है की वे हर चीज जाने दुनिया की, जिसके वे संबध में आते है| बच्चोंको सही गलत इसका अंदाजा नहीं होता की, वे बस सोचते है और जानने की कोशिश करते है| बड़े लोग जो होते है वे सिर्फ सही और गलत का अनुमान लगाकर बताते है


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