Wednesday 23 October 2013

सफर उदवाडा का.......................................

मुझे शेठ और बाई के साथ जब मौक़ा मिला उनके गाव “उद्वाड़ा” जाने के लिए तो मै काफी खुश थी| क्योंकि मुझे कुछ नया देखने मिलने वाला है| सबसे पहले मेरे लिए यह बात काफी आकर्षित करती थी की मुझे गाव देखने का मौका मिलने वाला है| बरसों साल पहले वहा पर पारसी ही लोग रहते थे, आज भी कुछ घर है| लेकिन कईयो ने अपने घर को बेचकर शहर में चले गए| अब वहापर जैन, गुजराती लोग रहते है|
जाने से पहले आखो में गाव की यह छवि थी की जिसमे मुझे लगा की दूर-दूर तक घर होगे, वहा के घर काफी पुराने के किस्म के होगे लेकिन जाने के बाद देखा की, उनके सामने, बगल में भी घर है| वैसे तो शेठ-बाई कभी-कभी गाव जाकर देखते है लेकिन उन्होंने एक औरत भी रखी है जो हर दिन घर की सफाई करके जाती है| उसे वे “गंगा” कहते है, उनका नाम गंगूबाई है| उन्हें चार बच्चे है| उनके बच्चे के भी बच्चे है| बाई कह रह थी की गंगुबाई की माताजी वहापर आती थी, उनके गुजरने के बाद गंगुबाई ने घर संभालने का काम लिया|

ट्रेन का सफर आते-जाते वक्त काफी अच्छा रहा| बाई-शेठ ने काफी बातचीत की| वे मुझे हर तरह की बाते बता रहे थे जैसे उनके गाव, धर्म, लोग इत्यादि| इसलिए सफर में बोरियत सी महसूस नहीं हो रही थी| उस बिच खाने-पिने की चीजे बेचनेवाले भी लोग थे| मेरे सिट के सामने ही एक औरत थी| वो अपने पती से काफी नाराज थी| इसलिए वो मुम्बई में अपने भाई के घर आई थी भाई के घर से निकलने के बाद उसकी ट्रेन प्लेटफार्म से छुट गई थी इसलिए उसे दूसरी ट्रेन पकड़ने पड़ी| उसके भाई ने उसे फ़ोन किया की वो कहा है लेकिन उसे विश्वास नहीं हो रहा था की उसकी बहन गाडी में बैठी है| इसलिए उस औरत ने मुझे उसका मोबाइल थमाते हुए मुझे कहने के लिए कहा| काफी अजीब लगा मुझे फोनपर बात करते हुए| बिच ही बिच वो गाडियों का वक़्त, घासलेट का बढ़ता हुआ भाव इत्यादि की बात कर रही थी| ऐसे लग रहा था की उसे बहुत कुछ बोलना था लेकिन मुझे ऐसा कुछ मौक़ा ना मिला| गाडी में दो बड़े बच्चे डफली-खंजेरी भी बजा रहे थे| अच्छा बजा रहे थे|
गाडी में बाई-शेठ बता रहे थे की, इरान में जब जब पारसी लोगो को मुस्लिमो की ओर से निकाला गया तो वे भारत में आ के उन्होंने अपने सामाज के लोगो को स्थापित किया| पहली बार उनका पैर गुजरात के संजान गाव को छुआ था| उसके बाद उदवडा, वापी, सूरत इन जगह में बिखर गए| शेठ आगे बता रहे थे की, उदवडा इस गाव का नाम पहले ऊंटवडा था क्योंकि उस गाव में जाड़ेराणा नाम के राजा के ऊंट हुआ करते थे| उन दिनों में तो जाडेराणा तो संजान गाव के राजा थे|
वे कह रहे थे की संजान गाव में उनके कुछ भाइयो ने एक बहुत बड़ी सी कैप्सूल बनाई है जिसमे उनको जो भी धर्म, क्रियाकर्म, ऐतिहासिक वास्तु, तस्वीरे इत्यादि चीजो को कैप्सूल में भर दिया है| कैप्सूल को जमीन के अंदर गाडा गया है और उसके उपर स्तंभ भी बनाया है| ताकि यह दुनिया जब पूरी तरह से नष्ट हो जाए और दूसरी पीढ़ी जब आएगी तो उत्खनन के द्वारा उन्हें पता चले की इससे पहले कौन लोग रहते थे|
पारसियों के धर्मगुरु ने जाडेराणा के साथ बातचीत की| वो इस तरह से थी की जाडेराणा ने दूध से भरा हुआ गिलास धर्मगुरु को दिया यह बताने के लिए की, “हमारी प्रजा यहाँ पर है जो अधिकतर भरी हुई है तो उसमे आपके लोग ना समा पायेगे, तो इसका जवाब धर्मगुरु ने दूध के गिलास में शक्कर डाली और जाडेराणा को पिने दिया उसका मतलब यह था की आपके स्थान को में हमारे लोगो की मीठास भर देगे| फिर इस तरह से पारसी लोगो को संजान से लेकर सूरत, फिर मुंबई तक वे बढ़ गए| जाड़ेराणा के नियम के अनुसार उनकी कई शर्ते पारसियों को माननी पड़ी| हिंदुओ में शादी दिन में की जाती है इसलिए इन्हें यह नियम दिया की वे रात को शादी का वक़्त रखे|
शाम के वक्त हम उद्वाड़ा स्टेशन आ पहुचे| छोटा सा स्टेशन है| स्टेशन से ६ किलोमीटर की दुरी पर गाव था| गाव में पहुचने के लिए रिक्शावाले को WZO कहते है ताकि वो निश्चित जगह पहुचा पाए| WZO याने की WORLD ZOROASTRIAN ORGANISATION. यह संस्था उदवाडा के रतनाशाहां के प्रॉपर्टी का सही इस्तेमाल होने की वजह से कुछ पारसियों ने मिलकर बनाई है|
कहा जाता है की, पुराने लोग यह मानते थे की गाव स्टेशन से हमेशा दूर ही रखते है वो इसलिए की वो नहीं चाहते की उसका शहर बने| लेकिन तब पर भी अब गाव में केमिस्ट का दूकान बना है| उसके अलावा एक्सिस बैंक का एटीएम भी खुल रहा है| घर के पास ही एक बहुत सा सुंदर सा समुन्दर है| बाई बता रही थी की पहले यह समुद्र काफी स्वच्छ था लेकिन कई लोग यहाँ पर बाहर छुट्टी मनाने आते है इसलिए इसमें काफी गंदगी हुई है| बाई ने मुझे शुक्र का चमकता हुआ तारा दिखाया, जो बहुत ही खुबसूरत है| कह रही थी की शुक्र का तारा आकाश में रातको पहले आता है उसके बाद अन्य तारो का आगमन होता है| मैंने समुद्र की तस्वीरे भी खिची|
जब पूरी पारसी प्रजा गुजरात में आ पहुचे तो उनके अग्नि-दैवत को भी लाया गया| उद्वाड़ा पहला पारसियों का मंदिर स्थापित हुआ जिसका नाम है “इरानशाहा” यह अग्यारी से भी बड़ा मंदिर है|जिसमे  इरान के अग्नि-दैवत को उदवाडा में स्थापित किया इसलिए उस पहले अग्नि के मंदिर (अग्यारी) को इरानशाहा कहते है| फिर उस ही अग्नि के दिये को अन्य जगह में लाया गया जिसे “अग्यारी” कहते है| इस अग्नि को पवित्र माना जाता है| अग्नि की पूजा उनके धर्मगुरु के द्वारा अग्यारी में की जाती है| पारसी के अलावा अन्य जाती के लोग अग्यारी में आने को मना किये जाते है| क्योंकि इस धर्म में प्रवेश करने के लिए उन सारी विधियों से जाना होता है ताकि अग्यारी में प्रवेश करने के काबिल हो सके|

शेठ उनके बचपन की कुछ यादे बता रहे थे की वे एकदिन सिगरेट पिने का ढोंग उनके पिताजी के सामने कर रहे थे उनके पिताजी ने उन्हें बहुत पिटा वो इसलिए क्योंकि अग्नि के साथ मजाक नहीं किया जाता और उसे खिलोने की तरह खेला नहीं जाता| इससे पता चलता है की आग का महत्व उन लोगो के लिए कितना है|
पारसी लोग काफी शांति से रहना पसंद करते उसके साथ-साथ जिदंगी को बेहतर कैसे बनाया जाये इसपर काफी विचार करते है लेकिन यह विचार इतना आगे तक ले जाता है की कई लोग शादीया ही नहीं करते| इस वजह से इनकी संख्या काफी कम होती जा रही है| कई लोग उनके धर्म के रीतिरिवाजो से भागते है इसलिए पारसी पंचायत ने स्कूल भी निकाली है जहापर बच्चे को धर्म की शिक्षा और उसके साथ औपचारिक शिक्षा भी ले| ताकि बच्चे को सात साल के धर्म की शिक्षा लेते हुए वे अपनी प्राइमरी, अपर-प्राइमरी और हाई स्कूल के शिक्षा से भी वंचित ना हो| और ऐसे बच्चो को स्कूल से पैसे दिए जाते है| अगर बच्चा पहले नम्बर पर हो तो उसे महीना तीन हजार, दूसरा हो तो पाच हजार और तीसरा बच्चा हो तो पंधरा हजार की रकम दि जाती है| ताकि वे धर्म की सीख और उसका वारसा आगे तक ले जाए|    
घर तो देखा जाए तो बंगले है जो काफी बड़े है| साग, बबुल के पेड़ से घर बने है| नारियल, आम, ताड़, अनार के पेड है| कहाँ जाता है की वे लोग ताड़ की ताड़ी बनाते हुए बेचते थे| उसी के साथ – साथ वे पापड, भाकरा भी बनाते थे और उसे बेचते थे| उदवाडा के पापड प्रसिद्ध है| लेकिन अब इन पापड़ बनाने के आ काम वहा के अन्य समाज के लोग करते है| कईयो के घर के आँगन में कुआ भी है, उन दिनों पानी की सुविधा सरकार की और से नहीं होती थी इसलिए उन्होंने अपने कुए बना लिए, मैंने एक कुए में कछुए को भी देखा वो इसलिए होता है क्योंकि वो पाणी को साफ़ रख पाए|
उनके उदवाडा के घर को काफी पवित्र माना जाता है उसके साथ अगर कोई महिला को महावारी आ जाए तो वो उस घर में रूक ही नहीं सकती| उसे तुरंत उस घर को छोड़ना होता है| ऐसे कहा जाता है की उन घर के महिलाओं को जब महावारी आती थी तो उन्हें अलग कमरे में रखा जाता था आज भी वो कमरा है| उसे जमीन पर ही सोने के लिए देते थे, वो किसी भी चीज को हाथ लगाने के बंधिश थी| महावारी आने के पहले पाच दिन और आ जाने के बाद के पाच दिन तक उसे अलग सा रखा जाता था| फिर उसे सिर से पाँव तक के स्नान के बाद ही वो घर में घूम पाती थी|
पारसियों में भी उनकी अन्य जनजाति है जैसे दस्तूर, ब्राह्मिण| वे लोग होते है जो उनके क्रिया-कर्म का उनका काम करते है जैसे श्राद्ध के लिए जो खाने का नैवेद्य दिखाते है उसे बनाने का मान सिर्फ उन्हें ही मिलता है| उसको अन्य पारसी के लोग नहीं बना सकते है| बनाते वक्त वे काफी चीजो का ध्यान रखते है| नैवेद्य बनाते वक्त जो पारसी लोग नहीं है उन्हें किचन में आने की इजाजत नहीं होती| खाना बनाने से पहले उपर से नीचे तक नहाते-धोते है, पुराने कपडो को छूते तक नहीं| फिर नैवद्य बनाते वक्त घर  में किसी भी वस्तु को नहीं छुआ जाता जैसे की चूल्हे को भी नहीं छुआ जाता है| सिर्फ बरतन और खाने की सामग्री को छुते है| वैसे तो बाई और शेठ तो नैवेद्य लोगो को मुफ्त में बनाकर देते है|

शेठ कह रहे थे की, अच्छे काम और बुरा काम को स्वर्ग या नरक में समान तरीके से देखा जाता है| जैसे की जितना मैंने अच्छा काम किये हो उसका रिवॉर्ड उतना ही मिलेगा और जितने बुरे काम धरती पे किये हो उसकी शिक्षा भी उतनी ही मिलती है|
शेठ ने उनके हाथो ने अपने हाथो से पत्थर, शिपले की मदद से निर्जीव जानवर बनाए है जैसे हाथी, कछुआ जो काफी सुंदर तरीके से बनाए है| उन दोनों पती-पत्नी में सिखने करने की ललक काफी है| वे दोनों हमेशा कुछ ना कुछ पढ़ते-देखते रहते है और उसके बारे में जानकारी मुझे देते है| आज उनकी ही वजह से में उस गाव में जा पाई| बाई कह रही थी की इस गाव में आने के लिए नसीब होना चाहिए और यह मौक़ा मुझे मिल गया|  

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