Saturday 7 September 2013

एक पुरानी नौकरानी की यादे..................


अभी फिर से मैंने नौकरानी के डायरी को पढ़ना शुरू कर दिया| अब पढ़ते वक्त याद आया की मै भी कुछ दिनों के लिए किसी के घर नौकरानी थी| इसी शानो की तरह, मुझे भी उन सारी घर मालकिनो के लिए गुस्सा आता था | क्योंकि वो होती ही है वैसी| बहुत काम देने वाली| पैसे तो कम ही देती है, लेकिन काम इतना की, अपना घर का भी इतना ना हो| जिस घर में मैंने काम किया था, तब मै शायद ही १२ वी पढ़ती होगी| और उसके पहले भी एकदम बचपन में याने ५वी या ६ ठी में होगी तब माँ काम करती थी, और मै भी बरतन माचती थी | लेकिन जब मै माँ के साथ एक गुजराती के घर काम करती थी, तब वहा पर एक बूढी औरत थी, खाने पिने की लिए हमेशा आगे रहती थी| मैने उसके एक खाने की स्टाइल देखी  वो रोज एक ही सब्जी खाती थी, जैसे लौकी की सब्जी, रोटी जैसे हमारा मुकेश बनाता है, तो उस बूढी ने मुझे भी सिखाया था| तो यही उसका रोज का खाना होता था| खाना खाने के बाद, वह जब हाथ प्लेट में धोती थी, तब वह हाथ धुला हुआ पानी पी लेती थी| बड़ा अजीब था उसका हाल| मै सोचती थी यह बूढी कितना बचाती है | माँ तो बहुत ही हसती थी | उन घरो में काम करना वैसे तो मुझे अच्छा लगता है लेकिन एक ही बातकी दिक्कत होती थी की, उनके घर बड़े होते थे इस वजह से यह होता था की, पोछा तथा झाड़ू लगाने में बहुत समय और मेहनत होती थी| और थकान तो पूछो मत| और भूख भी बड़ी तेजी से लगती थी|
मैंने माँ के पास से भी घरो के किस्से सुने है| एक घर वो काम करती थी उसे चीनीवालानाम से पुकारती थी| क्योंकि उनका लास्ट नेम ही चिनिवाला था| जैसे एक घर मै वो काम करती थी, तो उसे पता था की सेठ और सेठानी के बिच में झगड़े थे, उनकी एक बेटी थी| जो बहुत खुबसूरत थी| जब वे दोनो घर पर नहीं होते थे तो वो कई लड़के दोस्तों को घर पर बुलाती थी| एक दिन तो उसने मुझे पास में बुलाकर कुछ कपडे और गहने पहनवाए जिसमे में खुबसूरत दिख रही थी|
हमारे यहाँ के कई पडोसी औरते घरकाम पारसीयोंके घरो में करती है| उन्हें वे नाम कंजूस देती है| क्योंकि वे कभी भी अपने नौकरानीयोंको कुछ नहीं देती, और उसमे भी पगार तो सबसे कम| तो यह औरते उन्ही बहुत सारे गालिया बकती है|
कुछ औरतोने तो काफी साल काम किया| तो वह मालकिने उनके समस्या में काम आती है| एक मालकिन ने तो एक नौकरानी के बच्चे के शादी के लिए पैसे तक दिए थे जिसे उन्हें लौटाने नहीं थे| जैसे की हमारे ही घर का उदहारण  है की, मेरी दादी, ने एक सेठानी के घर ४० साल तक काम किया| और जब दादी ने उसका काम छोड़ दिया तो उसके आगे के ज़िन्दगी के लिए हर महिना पैसे भी भेजती रही याने के दादी आखरी सास तक| एक दिन तो वह सेठानी तो खुद दादी को मिलने मुम्बई से पूना तक चली गई | जब की वह भी बूढी है|
तो इस तरह की यह बड़े लोगोंकी कहानिया है जिनमे से कुछ देवता निकलते है जो मरते दम तक साथ देते है| तो कुछ बहुत बुरे जिन्हें उनके नौकरानियो का कुछ लेना देना नहीं| उन्हें बस काम से मतलब है


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