Friday 6 September 2013

सफर ट्रेन का.............

ट्रेन का सफर तो वैसे काफी आरामदायी होता है, और किसी दुसरे जगह में जल्दी पहुच पाते है| मुम्बई ट्रेन की बात करो तो काफी तकलीफ देने वाली है, लोगो की भीड़ तो सिर्फ देखने लायक होती है| ऐसे लगता है जैसे लोग युद्ध के लिए जा रहे हो| ऐसे भागते है जैसे उनके पीछे कोई लगा है और जैसे गाडी तो बस उन्हें अब छोडके ही जाने वाली है कभी ना लौटेगी| इस भीड में तो छोटे बच्चे, बुजुर्गो को तो सफ़र करना तो मुश्किल होता है|

आजकल महिलाए भी काम करने लगी है तो महिलाओं के लिए घर का काम उसके बाद बाहर काम करना तो रोज का युद्ध ही है और उसमे ट्रेन का सफर तो बहुत परेशान कर देनेवाला होता है| लेकिन मुंबई के लोगो के लिए तो रोज का ही सफ़र है| इसे वे झेल पाते है|

महिलाओं की बातो को सुनना तो मजेदार होता है, वे कई तरीको के बाते अपनी महिला मित्र से करती रहती है| आज ही सुन रही थी, एक महिला अपने दुसरे दोस्त से कह रही थी की, मेरी बच्ची तो खाना ही नहीं खाती, हम लोग उस दिन पार्टी में गए थे, उसने सिर्फ खाने में पापड़ खाए, घर आने के बाद अपने बेटी से कहा की तेरी लायकी नहीं है इस तरह के पार्टी में जाना, टमाटर का सूप तो पि लेती”, बच्चो के लिए कितना भी कुछ करू तो दिल जलने लगता है”| दूसरी वाली कह रही थी की आजकल, तो बाई (नौकरानी) मिलना कठिन होने लगा है”| इससे पता चलता है की, कपडे धोना कितना मुश्किल काम है वैसे तो घर के सारे लोगो के कपडे धोना तो वाकई में मुश्किल ही है|

एक लड़की फोनपर बात कर रही थी, सामने वाले से कह रही थी, “आज मा को मरे हुए, पाच साल हुए, पापा से कहा है की श्राद्ध करना है, किसी ब्राह्मण को खाना खिलाये और छत पर नैवेद्य दिखाए” पहले साल में जब नहीं किया था तो मा को कितना दुःख हुआ होगा” कैसे पता चलता होगा की मरे हुए लोगो को भी मरने के बाद दुःख होता है|

इतनी सारी डेढ़ सारी बाते होती रहती है| वे भी क्या करे की अपनी घर के दुःख घरवालो से कहना तो होता नहीं इसलिए फुरसत मिलते ही अपने महिलो मित्रो से बात करने का मौक़ा अच्छा होता है| वैसे तो ट्रेन में सफर के दौरान के यह वक़्त बात करने के लिए अच्छा ही होता है और समय भी कैसे निकलता है तो पता ही नहीं चलता| 


वैसे तो फर्स्ट क्लास के डिब्बों में बैठने वाली महिलाये, दुसरे डिब्बो में बैठेनेवाली महिलाओं से तुलना हमेशा करती है, जब भी कोई गलती से कोई महिला, बच्चे, अन्य लोग बैठ जाते है तो उन्हें पाहिले ही बताया जाता है की यह फर्स्ट क्लास का डिब्बा है| या फिर जब करते है तो उन्हें बैठने के लिए इनकार किया जाता है| 

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